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पंडित हरिशंकर द्विवेदी जी के जन्मदिन पर उनको श्रद्धांजलि के तौर पर उन्हीं की”सन्मार्ग “ में प्रकाशित बाढ़ की विभीषिका पर एक आलेख

Public Lokpal
September 17, 2025

पंडित हरिशंकर द्विवेदी जी के जन्मदिन पर उनको श्रद्धांजलि के तौर पर उन्हीं की”सन्मार्ग “ में प्रकाशित बाढ़ की विभीषिका पर एक आलेख
दोष गंगा माता का नहीं, उसकी सन्तानों का है- बाढ़ों के खतरे क्यों बढ़ते जा रहे हैं?
(श्री हरिशंकर द्विवेदी द्वारा 'सन्मार्ग' के लिए विशेष)
वर्तमान 'ईरान' का मूल नाम 'अरण्य' है। आर्य वहीं से आये, ऐसी मान्यता अनेक इतिहास पंडितों की है। ईरान से वे पहले अफगानिस्तान पहुंचे। इसके बाद पंजाब से आगे बढ़ने पर वे गंगा के किनारों पर बसने लगे। गंगा के किनारों पर उन्होंने अपनी बस्तियां बनायीं। यह कथा हजारों वर्षों पूर्व की है।
दोष गंगा माता का नहीं
गंगा को आर्यों ने 'माँ' कहा। 'माँ' जिस प्राणी को कहा जाता है, उसने स्वप्न में भी अनिष्ट नहीं हो सकता। गत ५ जुलाई की बात है। पटना में गंगा के किनारे बैठकर उसका विकराल बनता हुआ रूप देखकर मैं सोचने कि ''जिस गंगा को हमारे पूर्वजों ने 'माँ' कहा, वह इतना क्यों बदल गयी कि जब कभी बरसात आती है, तब उससे भय लगने लगता है?'' क्या गंगा माता पागल हो गयी, जो प्रति वर्ष अपनी संतानों के जीवन और संपत्ति पर आक्रमण किया करती है? इस प्रश्न पर थोड़ा विचार करने पर पता चलेगा कि दोष गंगा माता अथवा भारत की अन्य नदियों का नहीं, जिन्हें आर्य 'पूज्य' मानते थे एवं जिनके स्वर्ग जाने की कल्पना करते थे। जल जीवन सीखे बिना उतरने पर वह जीवन को नष्ट कर देता है।
जल के सदुपयोग की आवश्यकता
भारत के किस भाग में कब बरसात आएगी और किन नदियों में कब जल बढ़ेगा, यह अज्ञात नहीं। हमारे देश की नदियों में १५० करोड़ 'एकड़ फ़ीट' पानी बहता है। यह भी हमें ज्ञात है। बरसात में नदियों का जल अधिक होता है, यह सभी जानते हैं। यदि हम यह भी जान जायें कि किस प्रकार शेष जल को ठीक ढंग से समुद्र में पहुंचा दें, तो अवश्य हमारे पूर्वजों की यह कल्पना सही प्रमाणित होगी कि नदियां माताओं के समान है। ईरान से चलने पर हमारे पूर्वजों को इस बात ने सबसे ज़्यादा आकृष्ट किया होगा कि भारत में बरसात अच्छी होती है और इसलिए यहाँ की नदियों में प्रखर जल हमेशा मिलता रहेगा।
बंगाल की खाड़ी की वर्षावायु
देखिये, हमारे देश में वर्षा कितनी व्यापक होती है। गर्मी के मौसम में जब वायुमंडल में उष्णता अत्यधिक होने लगती है, तब हवाएं ऊपर की ओर स्थान खाली हो जाता है। इस स्थान की पूर्ति हिन्द-महासागर से आयी हुई आर्द्रतापूर्ण हवाएं करती हैं। बंगाल की खाड़ी से जो ठण्डी हवाएं चलती हैं, वे मेघालय, असम एवं पश्चिम बंगाल में खूब वर्षा करती हुयी पश्चिम की ओर बढ़ती है। मार्ग में गंगा के किनारों से सटे भूखण्डों की वर्षा से सींचती हुई पंजाब तक पहुँचती है, जहाँ जाते-जाते वे सूखी हो जाती हैं। मार्ग में वे गिरिराज हिमालय में भी वर्षा करती है, जिससे नदियों में, विशेषतः ब्रह्मपुत्र और गंगा तथा सहायक नदियों में बाढ़ आ जाती है।
जलाशयों के अभाव की समस्या
हमारे पास यदि पर्याप्त जलाशय होते, तो हम नदियों की बाढ़ के पानी का एक बड़ा भाग उनमें संचित कर लेते और उसे सिंचाई के तथा बिजली पैदा करने के काम आते। हमारी नदियों में पानी बहता है १५० करोड़ 'एकड़-फीट', लेकिन हमारे वर्तमान जलाशयों की क्षमता है केवल १२ करोड़ 'एकड़-फीट' और वह बढ़ाकर अधिक से अधिक '२० करोड़ 'एकड़-फीट' तक ही पहुंचाई जा सकती है। बाकी १३० करोड़ 'एकड़-फीट' जल को ठीक दिशा देखर समुद्र में बहाने का काम रह ही जाएगा।