आरएसएस प्रमुख भागवत ने की 'भारत' का अनुवाद न करने की वकालत, बोले – ‘इससे पहचान और सम्मान ख़त्म होने का खतरा’

Public Lokpal
July 27, 2025
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आरएसएस प्रमुख भागवत ने की 'भारत' का अनुवाद न करने की वकालत, बोले – ‘इससे पहचान और सम्मान ख़त्म होने का खतरा’
कोच्चि: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि 'भारत' का अनुवाद नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे इसकी पहचान और साथ ही दुनिया में इसे जो सम्मान प्राप्त है, वह भी खत्म हो जाएगा।
भागवत ने कहा कि इण्डिया 'भारत' है, लेकिन जब भी हम इसके बारे में बात करें, लिखें या बोलें, चाहे वह सार्वजनिक हो या व्यक्तिगत, इसे इसी रूप में रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत की पहचान का सम्मान "क्योंकि यह भारत है" है। भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है। इसका अनुवाद नहीं होना चाहिए। 'भारत भारत है'। यह सच है। लेकिन भारत भारत है। इसलिए, बात करते, लिखते और बोलते समय, चाहे व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक, हमें भारत को भारत ही रखना चाहिए।
आरएसएस से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन 'ज्ञान सभा' में बोलते हुए उन्होंने कहा, "भारत को भारत ही रहना चाहिए। भारत की पहचान का सम्मान इसलिए है क्योंकि यह भारत है। अगर आप अपनी पहचान खो देते हैं, तो आपके पास चाहे जितने भी अच्छे गुण हों, आपको इस दुनिया में कभी सम्मान या सुरक्षा नहीं मिलेगी। यही मूलमंत्र है।"
अपने भाषण के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया शक्ति को समझती है और इसलिए भारत को आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत और समृद्ध बनना होगा।
भागवत ने कहा कि भारत को अब "सोने की चिड़िया" बनने की ज़रूरत नहीं है और अब समय आ गया है कि वह "शेर" बने।
उन्होंने कहा, "यह ज़रूरी है क्योंकि दुनिया शक्ति को समझती है। इसलिए भारत को मजबूत बनना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "इसे आर्थिक दृष्टि से भी समृद्ध बनना होगा।"
उन्होंने स्पष्ट किया कि देश को दूसरों पर शासन करने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया की मदद करने के लिए मजबूत बनना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख ने आगे कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्ति को कहीं भी अपने दम पर जीवित रहने में मदद करे। भारत की विरासत के अनुसार, व्यक्ति के आंतरिक गुणों के विकास के लिए शिक्षा आवश्यक है।
भागवत ने आगे कहा कि 'भारतीय' शिक्षा त्याग और दूसरों के लिए जीना सिखाती है।
उन्होंने आगे कहा कि अगर कोई चीज़ किसी व्यक्ति को स्वार्थी होना सिखाती है, तो वह शिक्षा नहीं है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल स्कूली शिक्षा नहीं है, बल्कि घर और समाज का वातावरण है।
भागवत ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि इसलिए, समाज को यह भी सोचने की ज़रूरत है कि अगली पीढ़ी को अधिक ज़िम्मेदार और आत्मविश्वासी बनाने के लिए किस तरह का माहौल बनाया जाए।
इस सभा में केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर, विभिन्न शिक्षाविद और राज्य के कुछ विश्वविद्यालयों के कुलपति शामिल थे।