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'जनता’ राजनीतिज्ञों द्वारा 'जनता' नेताओं की प्रतिष्ठा के विरुद्ध जेहाद
Public Lokpal
September 17, 2023
'जनता’ राजनीतिज्ञों द्वारा 'जनता' नेताओं की प्रतिष्ठा के विरुद्ध जेहाद
(२३ सितम्बर,१९७८ को सन्मार्ग में प्रकाशित पंडित हरिशंकर द्विवेदी जी का सम्पादकीय लेख)
चाहे चुनाव आज हो, चाहे ३ वर्ष बाद, जनता पार्टी को पुनः शासन करने का अवसर मिलने की सम्भावना अब नगण्य-सी हो गई है। कारण यह है कि जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ अपने तथा अपने गुट के स्वार्थों की सिद्धि में इतनी बुरी तरह से लगे हैं कि वे किसी भी 'जनता' नेता कि प्रतिष्ठा को सुरक्षित छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
जब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के भीतर सरहि चन्द्रभानु गुप्त को स्व० सम्पूर्णान्द एवं श्री कमलापति त्रिपाठी का सामना करना पड़ा, तब उन्होंने राज्य के तत्कालीन राजस्वमंत्री चौधुरी चरण सिंह का सहयोग प्राप्त किया। चौधुरी साहब के सहयोग का महत्त्व इसलिए था कि वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों के सबसे अधिक महत्वपूर्ण नेता थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश कि राजनीति में जाटों के साथ ही यादव और कुर्मी इत्यादि भी रहते आये हैं। इसलिए चौधुरी साहब उनके भी नेता माने जाते रहे हैं। जाटों, यादवों, कुर्मियों इत्यादि में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुत से धनी किसान हैं और चौधुरी साहब उनके पक्ष में अपनी शक्ति का उपयोग हमेशा से करते आये हैं; अतः वे धनी किसानों के नेता भी रहे हैं। भारत का स्वराष्ट्र मंत्री बन जाने के बाद भी चौधुरी साहब कभी नहीं भूल पाए कि वे मूलतः जाट नेता तथा धनी किसानों के सेवक हैं। इसीलिए तथाकथित 'पिछड़ी' जातियों और गांवों के लिए वे प्रेमविभोर रहते हैं।
'चरण' नहीं 'चेयर' सिंह
जब श्री चन्द्रभानु गुप्त ने स्व० सम्पूर्णान्द को उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री पद से हटाने में सफलता पा ली, तब उन्होंने स्व० जवाहरलाल नेहरू को सुझाव दिया कि उनके स्थान पर श्री चरण सिंह मुख्यमंत्री बना दिए जाएँ। स्वयं श्री गुप्त इसलिए मुख्यमंत्री नहीं बन रहे थे कि वे चुनाव में तथा बाद में उपचुनाव में भी प्रजा समाजवादी दल के उम्मीदवारों द्वारा बुरी तरह से हरा दिए गए थे। चौधुरी साहब जातिवादी तथा धनी किसानों के नेता के रूप में इतनी ख्याति पा चुके थे कि स्व० नेहरू उनके मुख्यमंत्री बनाये जाने के प्रस्ताव पर राजी नहीं हो सके। उन्होंने श्री गुप्त को आदेश दिया कि वे ही मुख्यमंत्री बनें। नेहरू जी के सामने तर्क करने का साहस किसे होता? बेचारे गुप्त जी मुख्यमंत्री बन गए और चौधुरी साहब की उच्चाभिलाषा पूरी नहीं हो सकी। वे बेहद नाराज हो गए और श्री गुप्त के कट्टर विरोधी बन गए और श्री गुप्त के कट्टर विरोधी बन गए। उन दिनों तक 'नेताजी' श्री राजनारायण गुप्त जी से आर्थिक सहायता लेकर पानी नेतागिरी चलाते थे, यद्यपि सदस्य थे स्व० राम मनोहर लोहिया के सोशलिस्ट पार्टी के गुप्त जी कांग्रेस के भीतर के पाने विरोधियों की टांग खींचने के लिए 'नेताजी' की सेवाओं का उपयोग किया करते थे। संभवतः गुप्त जी की इच्छा की पूर्ति के लिए है। अथवा उनको प्रसन्न रखने के लिए ही एक बार 'नेताजी' ने चौधुरी साहब को कहा था कि वे 'चरण सिंह' नहीं वरन 'चेयर सिंह' है।
'राम' और 'हनुमान'
स्व० लोहिया ने जब समाजवाद की स्थापना के लिए पिछड़ी जातियों के -हरिजनों अथवा वनजातियों के नहीं-नेता का रोल आरम्भ किया, तब 'नेताजी' श्री राजनारायण को चौधरी साहब का असाधारण महत्त्व समझ में आया। वे चैधुरी साहब के 'हनुमान' का पद ग्रहण करने के लिए श्री चन्द्रभानु गुप्त का शिविर छोड़कर चौधुरी साहब के शिविर में पहुँच गए। इस वक़्त राम और हनुमान दोनों ही 'चेयर' से अलग हैं एवं दोनों बुरी तरह छटपटा रहे हैं कि किस प्रकार फिर 'चेयर' पर बैठें।
चंद्रशेखर पर आक्रमण
चौधरी साहब और 'नेताजी' दोनों को आजकल .... मुख्य विरोधी के रूप में प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई दिखाई देते हैं। श्री देसाई के पुत्र श्री कांति देसाई मॉल बनाने में तेज आदमी बताये जाते हैं। उनकी यह तेजी सहन नहीं हुई थी, तो कामराज योजना के अंतर्गत नेहरू जी ने मोरारजी भाई को 'चेयर' से हटा दिया था। चौधुरी साहब और नेताजी ने उसी कांति भाई को बहाना बनाकर प्रधानमंत्री पर हमले करना आरम्भ कर दिया है। मोरारजी भाई का सौभाग्य इस बार यह रहा कि जो चंद्रशेखर किसी समय कांति भाई के कारनामों को प्रकाश में लाने में सबसे आगे थे, वे आज-कल परिस्थितियों से विवश होकर उनके साथ हैं। चंद्रशेखर हिन्दू विश्वविद्यालय के दिनों से ही जब वे तथा राजनारायण, दोनों विभिन्न शिविरों के छात्र नेता थे, 'नेताजी' के पैंतरों को पहचानते हैं। मोरारजी देसाई के साथ सहयोग करने के लिए चंद्रशेखर जब 'नेताजी' एवं उनके 'राम' चौधुरी साहब के प्रकोप का पात्र बने, तब दोनों को बुरी तरह मुंह कि खानी पड़ी।
मोरारजी भाई नरम पड़े
जहाँ ताज चौधुरी साहब एवं उनके 'हनुमान' की पैंतरेबाजी का प्रश्न था, वहां तक चंद्रशेखर ने मोराजी भाई का साथ दिया, लेकिन कांति भाई पर जब श्री मधु लिमये ने जनता पार्टी के चुनाव कोष में ८० या ९० लाख रुपये वसूलने का तथा उसका हिसाब नहीं देने का आरोप लगाया, तब चंद्रशेखर के लिए कठिन स्थित उत्पन्न हो गई। चौधुरी जातिवादी हैं एवं सोशलिज्म तहा औद्योगीकरण के विरोधी हैं, लेकिन रूपये-पैसे के मामले में अभी तक किसी बड़ी शंका के शिकार नहीं बने, यद्यपि कुछ लोग उनके दामाद को कांति भाई की श्रेणी में मानते हैं। अगर उन्होंने कांति भाई पर आरोप लगने की बात उठायी और लिमये ने ताजा आंकड़ा देकर उसकी पुष्टि कर दी, तो प्रधानमंत्री को आरोप की जाँच करानी चाहिए, यह मत लोकनायक जयप्रकाश नारायण का हुआ।
चंद्रशेखर भी इस प्रश्न पर लोकनायक से सहमत हुए। जब मोरारजी भाई को इस स्थिति की सूचना मिली, तब उन्होंने चौधुरी साहब से समझौता करने में कल्याण समझा और वे इसके लिए राजी हो गए कि अगर चंद्रशेखर पदत्याग करने को तैयार हों, तो उन्हें चौधुरी साहब के जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाये जाने पर आपत्ति नहीं होगी। इस प्रकार समझौता कराने में अग्रणी रहे श्री कर्पूरी ठाकुर, जो एक ओर तो अपने राजनीतिक भविष्य की सुरक्षा के लिए तथाकथित 'पिछड़ी' जातियों-यादवों, कूर्मियों इत्यादि- के नेता बन गए हैं और दूसरी ओर यह भी जानते हैं कि जनता पार्टी केवल इन्हीं जातियों की पार्टियों नहीं है। बेचारे ठाकुर का दुर्भाग्य यह है कि वे स्वयं आर्थिक एवं सेक्स सम्बन्धी गंभीर आरोपों का शिकार बन गए हैं।
प्रोफ्यूमो-कीलर कांड भी फीका पड़ा
मोरारजी भाई की अवसरवादिता का उत्तर चंद्रशेखर ने यह घोषणा करके दिया कि यदि उनके पदत्याग से पार्टी की एकता सुरक्षित रह सके, तो वे सहर्ष पदत्याग के लिए तैयार हैं। उनकी इस घोषणा पर बाबू जगजीवन राम बहुत अप्रसन्न हुए, क्योंकि वे चौधुरी साहब के पदच्युत किये जाने के बाद कान्ति भाई के प्रकरण को लेकर मोरारजी भाई को हटाए जाने की राह देख रहे थे। 'बाबू' जी क्यों चौधुरी साहब के अध्यक्ष बनाये जाने के विरोधी हैं, इस प्रश्न पर नाराज 'नेताजी' के अनुयायियों ने 'बाबू' जी को सबक सिखाने का निशचय किया। स्मरणीय है कि 'बाबू' जी भी कामराज योजना के अन्तर्गत राज-राजनीति से सन्यस्त किये गए थे। उनके सन्यस्त किये जाने का भी कारण उनके एकलौते पुत्र सुरेश कुमारजी बने, जिनकी रसिकता दिल्ली में तो क्या, सारे देश में मशहूर हो गयी है। नेताजी के अनुयायियों ने एक ओर तो सुरेश कुमारजी की पत्नी को खड़ा किया और दूसरी ओर उनकी प्रेमिका सुषमा चौधुरी को एवं उनको लेकर ऐसा काण्ड हो गया, जिसे जान और सुनकर ब्रिटेनवासियों को प्रोफ्यूमो-कीलर काण्ड भी कम रंगीन नजर आता होगा दोनों की भीषण काम क्रीड़ाओं के ८५ चित्र खींचे गए हैं, लोगों को दिखाये गये हैं और उन्हें पुस्तक के रूप में छापने की चर्चा भी की जा रही है।
'जनता' राजनीतिज्ञ ही 'जनता' नेताओं के विरोधी
यदि बीच में बहादुर संजय और उसकी बहन गीता की हत्या से दिल्ली हिल नहीं गयी होती एवं बाढ़ की विभीषिका ने दिल्ली को चपेट में नहीं ले लिया होता, तो चौधुरी साहब के खेमे में सरगर्मी काफी बढ़ गयी होती। गत १३ अगस्त को पश्चिमी दिल्ली के नांगलोई ब्लॉक के गांव कांझावाला के जाटों ने हरिजनों के विरुद्ध छेड़े गये अपने अभियान को दिल्ली पहुँचाकर चौधुरी साहब के नेतृत्व की शक्ति का प्रभाव दिल्ली में प्रदर्शित करने का आयोजन किया था। उस आयोजन से उनका हौंसला बढ़ा और उससे मोरारजी भाई भीतर ही भीतर आतंकित भी हो सकते हैं। ऊपर से वे दृढ़ता चाहे जितनी भी दिखायें, लेकिन वे नहीं चाहते कि जाटों को अपने सबसे बड़े चौधुरी की विजय के लिए, लाखों की रैली दिल्ली में आयोजित करने का मौका मिले। तो भी दोनों के बीच समझौता शायद इसलिए संभव नहीं कि जो लोग जनता पार्टी के राजनीतिज्ञ कहे जाते हैं, उनमें से कोई नहीं चाहता कि कोई 'जनता' नेता बहुत मजबूत बन जाय, चाहे वह मोरारजी भाई हों, चाहे चौधुरी साहब, चाहे 'बाबू' जी, चाहे अटलजी, चाहे जार्ज साहब, चाहे चन्द्रशेखर।'