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1 मई जब बम्बई प्रांत महाराष्ट्र बना
Public Lokpal
May 01, 2022
1 मई जब बम्बई प्रांत महाराष्ट्र बना
30 अप्रैल, 1960 का दिन। सुबह से ही सरगर्मियां जारी थीं। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उसी रात लंदन जाना था और वे बम्बई आ पहुंचे थे। राजभवन में मुलाकातियों से भेंट और शिवाजी पार्क और गिरगांव चौपाटी पर दो कार्यक्रम निबटाकर प्रधानमंत्री रात 10.50 बजे राजभवन वापस आ पहुंचे। रामलाल की शहनाई, वासुदेव शास्त्री कोणकर के वेदमंत्रोच्चार व राज्यपाल श्रीप्रकाश के भाषण के साथ रात्रि 11.30 बजे मुख्य कार्यक्रम शुरू हुआ। ठीक 12 बजे का गजर होते ही नेहरू जी ने महाराष्ट्र के नए नक्शे का अनावरण किया और राष्ट्रध्वज फहराने के साथ ही भारतवर्ष के पटल पर एक नए राज्य का उदय हो गया। इस अवसर को विशिष्ट बनाया वसंत देसाई के संगीत निर्देशन में सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने - ज्ञानेश्वरी के ‘पसायदान’ के गान से।
एक मई - सुबह आठ बजे ब्रेबोर्न स्टेडियम में पुलिस परेड के आयोजन के बाद दिन 12.34 बजे महाराष्ट्र के नए मंत्रिमंडल ने शपथ ली।
‘संयुक्त महाराष्ट्र’ की अवधारणा 1938 से है। 62 वर्ष पहले तक गुजरात बम्बई प्रांत का ही अंग था। स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और एस. के. पाटील सरीखे नेताओं ने अचानक कांग्रेस का घोषित रुख बदलकर भाषावार प्रांतों के विरोध में राग अलापना शुरू कर दिया। इससे देश के कई प्रांतों में असंतोष की लहर उठी जो आमरण अनशन में तेलुगु राष्ट्रवादी नेता पोट्टी श्रीरामुलु की मौत से ज्वाला बनकर धधक उठी। राज्य पुनर्गठन आयोग इन्हीं मजबूरियों की देन था। 1956 में आयोग ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व केरल के गठन की सिफारिश करते हुए बम्बई राजधानी रखते हुए महाराष्ट्र और गुजरात को मिलाकर द्विभाषी प्रांत बनाने का सुझाव दिया, जबकि विदर्भ को पूर्व हैदराबाद व बरार रियासतों और मध्य प्रांत के मराठीभाषी क्षेत्रों के साथ मिलाकर अलग राज्य बनाने की बात थी।
‘मराठा’ में आचार्य अत्रे के विस्फोटक अग्रलेखों से उत्तेजित होकर एकजुट हुए संयुक्त महाराष्ट्र समिति और संयुक्त महाराष्ट्र परिषद ने केशवराव जेधे, आचार्य अत्रे, प्रबोधनकार ठाकरे, सेनापति बापट, एस. एम. जोशी, श्रीपाद अमृत डांगे, नानासाहेब गोरे, भाई उद्धवराव पाटील आदि के नेतृत्व में बड़ा आंदोलन किया। इन नेताओं को जेल में डाल दिया गया पर प्रतिरोध रुका नहीं। फ्लोरा फाउंटेन सहित प्रांत के कई हिस्सों में गोलियां चलने से 107 लोगों को प्राणों की आहुति देनी पड़ी। मोरारजी देसाई-जो मुंबई को महाराष्ट्र का अंग बनाने के सख्त खिलाफ थे- से इस्तीफा लेकर आखिर यशवंतराव चव्हाण को बंबई प्रांत का मुख्यमंत्री बनाया गया। सी. डी. देशमुख ने केंद्रीय वित्तमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मुंबई मनपा चुनावों में मुंह की खाकर आखिर कांग्रेस लोकप्रिय मांग मानने को मजबूर हो गई। 4 दिसंबर, 1959 को महाराष्ट्र व गुजरात के द्विभाषी प्रांत के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।
1 मई, 1960 को कोंकण, मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र (खानदेश) तथा विदर्भ संभागों को जोड़ कर महाराष्ट्र राज्य की स्थापना की गई। इनमें मूल बम्बई प्रांत में शामिल दमन तथा गोवा के बीच का जिला, हैदराबाद के निज़ाम की रियासत के पांच व मध्य प्रांत (मध्य प्रदेश) के दक्षिण के आठ जिले तथा आस-पास की कई छोटी रियासतें शामिल थीं।
उधर, महागुजरात आंदोलन के फलस्वरूप गुजरात गुजराती-भाषी अलग प्रांत हो गया। पुराने बम्बई प्रांत की राजधानी ‘बम्बई’ नए महाराष्ट्र राज्य की राजधानी बन गई।
देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य
केंद्रीय सत्ता के बिखरकर छोटी-छोटी सल्तनतों में बदलने से पहले महाराष्ट्र ने सातवाहन व वाकाटक वंशों और फिर कलचुरी, चालुक्य, यादव, खिलजी और बहमनी वंशों का शासन देखा है। छत्रपति शिवाजी ने 17वीं शताब्दी में शक्तिशाली मराठा राज्य कायम कर मुगलों का दक्षिण कूच रोक दिया। 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में पेशवाई की हार के साथ मराठा शक्ति बिखर गई और 1818 तक अंग्रेजों ने संपूर्ण मराठा क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
35 जिलों से युक्त देश का तीसरा सबसे बड़ा यह राज्य पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में कर्नाटक, दक्षिण - पूर्व में आंध्र प्रदेश और गोवा, उत्तर - पश्चिम में गुजरात और उत्तर में मध्य प्रदेश से घिरा हुआ है। इसके हर क्षेत्र की निराली शोभा है। विशेषकर अरब सागर के समांतर सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला से सुजज्ज तटीय क्षेत्र कोंकण की। मुंबई महानगर का एक बड़ा भूभाग इसका अंग है। महाराष्ट्र निवेश के लिहाज सबसे संपन्न राज्य तो है ही, देश का सबसे धनी राज्यों में भी गणना करवाता है। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है।
*साभार- प्रसिद्ध पत्रकार विमल मिश्र की Facebook वॉल से*