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पत्रकारिता की पाठशाला - पंडित हरिशंकर द्विवेदी

Public Lokpal
September 17, 2021

पत्रकारिता की पाठशाला - पंडित हरिशंकर द्विवेदी


(पब्लिकलोकपाल परिवार द्वारा पंडितजी के जन्म दिवस पर विशेष)

पं० हरिशंकर द्विवेदी का जन्म बलिया जिले के सनातनधर्मी सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में में चांदपुर गाँव (तहसील बैरिया) में 17 सितम्बर 1922 को हुआ था। मूर्धन्य पत्रकार पंडित हरिशंकर द्विवेदी अपने युग के प्रतिनिधि पत्रकार थे। उन्होंने पत्रकारिता का प्रारम्भ हिन्दी भाषियों के गढ़ कोलकाता से किया। कोलकाता से ही हिन्दी का पहला अख़बार 'उदन्त मार्तण्ड' प्रकाशित हुआ था। पत्रकारिता की परम्परा प्राचीनतम प्रकाशित पत्र 'दैनिक विश्वमित्र' में परिलक्षित है और प्रशंसित भी।

पंडित हरिशंकर मातृभाषा की पत्रकारिता में निष्णात हो गए थे और उन्होंने तन-मन से स्वयं के तपस्वी बनने की तकदीर लिखी। वह एक प्रशिक्षक पत्रकार थे और अधीनस्थ पत्रकारों की अशुद्धियों को सुधारते रहते थे। 

वह अब तक प्रकाशित हिन्दी के सबसे पुराने अख़बार 'दैनिक विश्वामित्र' के मुंबई और नई दिल्ली संस्करणों के संपादक रहे। उन्होंने मुंबई विश्वामित्र में मशहूर गीतकार स्व० शैलेन्द्र को उपसंपादक नियुक्त किया। वह 'नवभारत टाइम्स' कोलकाता के संपादक रहे। इसके बंद होने पर वे मुंबई 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' में चले गए जहाँ उन्होंने हिन्दी को प्रतिष्ठापित किया। उनके रुतबे का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि पं० जवाहरलाल नेहरू उनसे मिलने स्वयं आया करते थे।

यही नहीं उन्होंने 1942 के 'असहयोग आन्दोलन' में भी हिस्सा लिया और खद्दरधारी बन गए। उन्होंने सन 42 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था और पंजाब से बलिया के अपने गांव चांदपुर तक पैदल चले आये थे। 

वह महज 25 वर्ष की उम्र में 18 अप्रैल 1948 से कलकत्ता से निकलने वाले दैनिक हिन्दी समाचार पत्र 'सन्मार्ग' के प्रथम प्रबंध संपादक भी बने। पंडित जी लगभग 13 सालों तक नवभारत टाइम्स के सम्पादक रहे। पहले कलकत्ता और फिर बम्बई और 10/06/1962 में दिल्ली के सम्पादक बने। उन्होंने बाद में कलकत्ता समाचार का भी संपादन किया। वह इस समाचार पत्र का वित्तीय कार्यभार भी देखते थे किन्तु आर्थिक कारणों से उन्होंने इस पत्र का प्रकाशन बंद कर दिया। 

उनका स्पष्ट मानना था कि ''पत्रकार व्यापारी नहीं हो सकता और व्यापारी बने बिना समाचार का उद्योग चलाना संभव नहीं है। ऐसे में अच्छे पत्रकार का संरक्षण संभव तभी है जब डालमिया (रामकृष्ण डालमिया, टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मालिक) जैसे कोई उद्योगपति या व्यवसायी इस उद्योग को चला रहा हो जहाँ अपने व्यापारिक लाभ के लिए पत्रकार एवं पत्रकारिता को अस्मिता को धूमिल न करे''।

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