कौन थे नीम करोरी बाबा, देश-विदेश के तमाम दिग्गज हैं जिनके भक्त!

Public Lokpal
June 15, 2022

कौन थे नीम करोरी बाबा, देश-विदेश के तमाम दिग्गज हैं जिनके भक्त!


नैनीताल के कैंचीधाम स्थित बाबा नीम करोली (नीब करोरी, नींव करारी का अपभ्रंश) बाबा उन आध्यात्मिक संतों में शुमार हैं, जिनके बारे में तमाम किवदंतियां हैं। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले (अकबरपुर गांव) में जन्मे नीम करोली बाबा को उनके भक्त हनुमान जी का अवतार भी बताते हैं। उनके भक्तों में एपल के सीईओ स्टीव जॉब्स से लेकर हॉलीवुड की दिग्गज एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स तक शामिल हैं। 

आज नीब करोरी बाबा भले ही दुनिया में न हों, लेकिन उनके आश्रम कैंची धाम में अब भी भक्तों-श्रद्धालुओं का वैसा ही ताँता लगता है। बताया जाता है कि कैंची धाम की स्थापना बाबा ने साल 1964 में की थी। 

कहा जाता है कि नीम करोली बाबा को 17 वर्ष की आयु में ही ईश्वर का साक्षात्कार हो गया था। वे बजरंगबली को अपना गुरु और आराध्य मानते थे। नीम करोली बाबा ने अपने जीवनकाल में करीब 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण कराया। लाखों फॉलोअर्स के बावजूद वे आडंबर से दूर रहना पसंद करते थे और एक आम इंसान की तरह रहा रहते थे।

एप्पल के सीईओ स्टीव जॉब्स 1973 में भारत की यात्रा पर आए थे। कहते हैं कि जॉब्स सन्यास लेने के मन बना चुके थे, लेकिन कैंची धाम पहुंचते ही उनकी सोच में बदलाव आ गया। दरअसल, वह नीम करोली बाबा के दर्शन करने पहुंचे थे, लेकिन बाबा देहांत हो चुका था। बताया जाता है स्टीव जॉब्स कुछ दिन आश्रम में रुके और ध्यान- योग किया। इसी दौरान उन्हें एपल का आइडिया आया।

यही नहीं वर्ष 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने उनसे नीम करोली बाबा का जिक्र किया था। मार्क ने बताया था कि इस मंदिर में जाने के लिए उन्हें एपल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स ने कहा था।

जानिए कौन थे नीम करोली बाबा: 

नीब करोरी बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के ग्राम अकबरपुर (फिरोजाबाद जिला) में एक धनी ब्राह्मण जमींदार परिवार में हुआ था। उनका जन्म मार्गशीर्ष के महीने में शुक्ल पक्ष अष्टमी को हुआ था और उनके पिता दुर्गा प्रसाद शर्मा ने उनका नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा रखा था। महाराजजी बचपन से ही सांसारिक मोहों से विरक्त थे। ग्यारह साल की उम्र में उनका विवाह एक संपन्न ब्राह्मण परिवार की एक लड़की से कर दिया गया था। अपनी शादी के तुरंत बाद वह घर छोड़ कर गुजरात चले गए। वह गुजरात और पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर घूमते रहे। लगभग 10-15 वर्षों के बाद (जैसा कि अकबरपुर गाँव के बुजुर्गों द्वारा बताया गया है) उनके पिता को किसी ने बताया कि उसने एक साधु को देखा है, जो नीब करोरी (नीम करोली) गाँव में उनके बेटे जैसा दिखता है।

उनके पिता तुरंत नीब करोरी गांव में अपने बेटे से मिलने और उसे लेने के लिए दौड़ पड़े। वहाँ वे महाराजजी से मिले और उन्हें घर लौटने का आदेश दिया। बाबा ने अपने पिता के निर्देशों का पालन किया और लौट आए। यह बाबा के दो अलग-अलग प्रकार के जीवन की शुरुआत थी। एक गृहस्थ की और दूसरी संत की। उन्होंने एक गृहस्थ की अपनी जिम्मेदारी के लिए समय समर्पित किया और साथ ही साथ अपने बड़े परिवार यानी दुनिया की देखभाल करना जारी रखा। हालाँकि, गृहस्थ या संत के कर्तव्यों का निर्वहन करते समय उनके जीवन और जीवन शैली में कोई अंतर नहीं था। उनके परिवार में एक गृहस्थ के रूप में उनके दो बेटे और एक बेटी है।

नाम को लेकर है असमंजस की स्थिति 

चूँकि वे नीब करोरी गाँव में रहते थे, तो उन्हें स्थानीय ग्रामीणों द्वारा नीब करोरी बाबा कहा जाता था। 'नीब करोरी' की स्पेलिंग को लेकर काफी कंफ्यूजन है। नीब करोरी हिंदी के इसी शब्द का ध्वन्यात्मक अनुवाद है। नीब को कभी-कभी निब के रूप में लिखा जाता है और करोरी को कभी-कभी करौरी के रूप में लिखा जाता है। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि नीब करोरी नाम महाराजजी ने स्वयं लिया था। उन्होंने कुछ जगहों पर इसी नाम से दस्तखत किए हैं। नीब (शुद्ध हिंदी में - नीव) का अर्थ है नींव और करोरी (शुद्ध हिंदी में - करारी) का अर्थ है मजबूत। तो नीब करोरी का मतलब एक मजबूत नींव है।

हालाँकि वर्षों में नीब करोरी का नाम निब करोरी, नीब करौरी जैसे विभिन्न तरीकों से बदल दिया गया और इसने अंततः "नीम करोली" का रूप ले लिया। यह नाम पाश्चात्य भक्तों के बीच लोकप्रिय हुआ और ऐसे ही चलता रहा।