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पहलवान से 'नेताजी' तक, ऐसा रहा मुलायम सिंह यादव का शानदार राजनीतिक सफर

Public Lokpal
October 10, 2022

पहलवान से 'नेताजी' तक, ऐसा रहा मुलायम सिंह यादव का शानदार राजनीतिक सफर


मुलायम सिंह यादव हाल के वर्षों में अस्पतालों के अंदर और बाहर रहे हैं, जिससे हर बार उनके स्वास्थ्य को लेकर डर पैदा हो गया है। अपने शुरुआती दिनों में पहलवान बनने के लिए मशहूर हुए समाजवादी पार्टी के संस्थापक सोमवार को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

अपने 83वें जन्मदिन से छह सप्ताह पहले गुरुग्राम के एक अस्पताल में 'धरतीपुत्र' कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया।

22 नवंबर, 1939 को उत्तर प्रदेश में इटावा के पास सैफई में एक किसान परिवार में जन्मे मुलायम ने राज्य के सबसे प्रमुख राजनीतिक कबीले को जन्म दिया। वह 10 बार विधायक और सात बार मैनपुरी और आजमगढ़ से सांसद चुने गए।

वह रक्षा मंत्री (1996-98) और तीन बार मुख्यमंत्री (1989-91, 1993-95 और 2003-07) भी रहे। एक समय वह प्रधान मंत्री पद के दावेदार भी रहे।

दशकों तक, उन्होंने एक राष्ट्रीय नेता के कद का आनंद लिया, लेकिन यूपी को काफी हद तक अपना निजी "अखाड़ा" बनाकर रखा जहाँ उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत एक किशोर के रूप में की। वह किशोर जो समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से प्रभावित था। 2017 में सपा अध्यक्ष पद छोड़ने और अपने बेटे अखिलेश यादव को वह पद सौंपने के खुद पार्टी सरक्षक बने रहे मुलायम पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए अंत तक 'नेता जी' ही रहे।  

एक "समाजवादी", मुलायम सिंह यादव राजनीति में संभावनाओं से भरपूर थे। कभी जुड़े कभी अलग हुए मुलायम का दलगत सफर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी तक सिलसिलेवार जारी रहा।

उन्होंने 1992 में अपनी खुद की सपा की स्थापना की। उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपने नेतृत्व वाली सरकार बनाने या बचाने के लिए बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के साथ गठबंधन किए।

2019 में, नेताजी ने संसद में नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर सबको हैरानी में डाल दिया उन्होंने सदाम में यह कामना की कि वह अगले चुनाव के बाद प्रधान मंत्री के रूप में लौटेंगे। यह तब हुआ जब उनकी पार्टी ने यूपी में मोदी की बीजेपी को अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा। टिप्पणी ने विश्लेषकों को चकित कर दिया। 

2014 में एक रैली में एक अन्य टिप्पणी के रूप में, जब उन्होंने बलात्कारियों के लिए मौत की सजा के खिलाफ बात करते हुए कहा, "लड़के गलतियाँ करते हैं" तो आक्रोश फैल गया। यही नहीं उन्होंने इस विचार की वकालत भी की थी कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को एक संघ बनाना चाहिए।

छात्र संघ के आंदोलन में हिस्सा लेते हुए राजनीति विज्ञान की डिग्री प्राप्त करने के बाद वह इंटर कॉलेज में कुछ समय तक शिक्षक भी रहे, 1967 में वह पहली बार विधायक बने। उनका विधायक बनना एक तरह से एक अलग ही नियति थी। असल में जसवंतनगर के सोशलिस्ट पार्टी के विधायक नाथू सिंह चाहते थे कि वह (मुलायम) अगले चुनाव में लड़ें। एक कुश्ती प्रतियोगिता में उनसे मिलने के बाद वे मुलायम से प्रभावित हुए।

उसी निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की और मुलायम को कई विपक्षी नेताओं की तरह जेल भेज दिया गया। 1975-77 के आपातकाल के बाद वह फिर रिंग में लौटे और लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष बने। जब पार्टी का विभाजन हुआ, तो उन्होंने राज्य इकाई के एक गुट का नेतृत्व किया।

1989 में मुख्यमंत्री बनने से पहले मुलायम यूपी विधान परिषद और फिर राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। भाजपा ने उनकी जनता दल सरकार को बाहरी समर्थन दिया था। 1990 में जब भगवा पार्टी ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मुद्दे पर समर्थन वापस ले लिया, तो कांग्रेस ने कुछ महीनों तक उनकी सरकार को बचाए रखा। भाजपा अभी भी 1990 की उस घटना को उठाती है जब पुलिस ने अयोध्या की बाबरी मस्जिद की ओर जा रहे कारसेवकों पर गोलियां चलाईं। कारसेवकों ने दिसंबर 1992 में 16वीं सदी की मस्जिद को ढहा दिया, उसी साल यादव ने सपा की स्थापना की, जिसे मुस्लिम समुदाय के सहयोगी के रूप में देखा जाने लगा।

नवंबर 1993 में, मुलायम सिंह यादव ने फिर से बसपा के सहयोग से यूपी में सरकार का नेतृत्व किया। हालाँकि बाद में बसपा ने सहयोग वापस ले लिया और सरकार गिर गई। 1996 में मैनपुरी से लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद सपा नेता राष्ट्रीय स्तर पर चले गए। जैसे ही विपक्षी दलों ने कांग्रेस के लिए एक गैर-भाजपा विकल्प बनाने की कोशिश की, यादव कुछ समय के लिए प्रधान मंत्री पद के लिए मैदान में दिखाई दिए। लेकिन वह एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री बन गए - रूस के साथ सुखोई लड़ाकू जेट सौदे को उनके कार्यकाल के दौरान अंतिम रूप दिया गया था। 

2003 में, अल्पकालिक बसपा-भाजपा गठबंधन सरकार के पतन के बाद यादव तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने। 2012 में सपा फिर यूपी सरकार बनाने की स्थिति में थी। इस समय मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया और वह 38 साल की उम्र में राज्य के सबसे कम उम्र के सीएम बने।

2017 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले पार्टी और परिवार की आपसी कलह के बीच अखिलेश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और खुद मुलायम सिंह पार्टी के संरक्षक घोषित किये गए।

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