पुरामहादेव जहाँ परशुराम ने काटा था अपनी माँ का सिर, आज शिवरात्रि में उमड़ा 3 लाख श्रद्धालुओं का सैलाब

Public Lokpal
July 26, 2022

पुरामहादेव जहाँ परशुराम ने काटा था अपनी माँ का सिर, आज शिवरात्रि में उमड़ा 3 लाख श्रद्धालुओं का सैलाब


(पब्लिकलोकपाल के लिए हर्ष वर्धन द्विवेदी की ग्राउंड ज़ीरो से रिपोर्ट) 

बागपत : यूँ तो सावन शुरू होते ही शिवभक्तों के 'हर-हर महादेव' से समूचा देश गुंजायमान हो जाता है लेकिन एक ऐसी जगह भी है जहाँ शिवभक्त रात्रि में भी जलाभिषेक करते हैं और उस जगह पर 'शिव-जाप' श्रावण मास की द्वादशी से आरम्भ होता है। यह स्थान है पुरामहादेव मंदिर जिसे परशुरामेश्वर भी कहते हैं। पुरामहादेव मंदिर मेरठ के समीप बागपत जिले के बालौनी कस्बे के पुरा गांव में स्थित है।

आज शाम 6 :45 पर मंदिर की चोटी पर झण्डोत्तलन के साथ ही यहाँ महाशिवरात्रि पर्व का आरम्भ हो गया है। भगवान शिव को जलार्पण करने के लिए शिवभक्तों का ताँता लगा हुआ है। कहा जाता है कि यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ रात्रि में भी शिवलिंग पर जलाभिषेक होता है। 

क्या है पुरामहादेव की कहानी-

पुराने समय में एक ऋषि हुआ करते थे, नाम था 'जमदग्नि'। एक बार वह अपने आश्रम पर नहीं थे। उसी समय हस्तिनापुर का राजा सहस्त्रबाहु वहां आखेट करता हुआ आश्रम आ पहुंचा। आश्रम और उससे जुड़े हुए क्षेत्र की समृद्धि देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया था। इस समृद्धि का रहस्य जानने के लिए वह आश्रम आया। जहाँ ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका ने उसे बताया कि इस सुख समृद्धि का कारण उनके यहाँ पलने वाली 'कामधेनु गाय' है। सहस्त्रबाहु ने रेणुका से काफी मिन्नतें की कि वह उसे कामधेनु सौंप दें। रेणुका ने पति जमदग्नि के वहां अनुपस्थित होने की बात कहकर उसे कामधेनु को सौंपने से इंकार कर दिया। सहस्त्रबाहु ने बात बनती न देख क्रोधित हो माता रेणुका को ही बलपूर्वक उठा ले गया और हस्तिनापुर ले जाकर कमरे में बंद कर दिया। रानी ने किसी तरह रेणुका को वहां से स्वतंत्र करा लिया और उन्हें वापस आश्रम भेज दिया। 

रेणुका ने आश्रम पहुँच कर ऋषि जमदग्नि से सारा हाल कह सुनाया। एक रात किसी और के महल में रहकर आई रेणुका पर जमदग्नि बड़े ही क्रोधित हुए और अपने पुत्रों को अपनी माता का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दे दिया। सबसे छोटे पुत्र ने पिता का आदेश माना और वही किया जिसका आदेश जमदग्नि ने दिया था। 

इस पुत्र का नाम था 'परशुराम'। माता का सिर काटने के बाद उन्हें बड़ा ही पश्चाताप हुआ। उन्होंने कुछ दूरी पर ही भगवान शिव की तपस्या करना शुरू कर दिया। घोर तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने माता रेणुका को पुनर्जीवन देने का वरदान माँगा। भगवान ने उनकी माता को पुनर्जीवित कर दिया और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा भी उपहार में दे दिया। यह वही फरसा था जिससे परशुराम ने न केवल सहस्त्रबाहु का वध किया बल्कि सम्पूर्ण पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से विहीन किया था।

कहा जाता है कि परशुराम ने मिट्टी का शिवलिंग बनाया था जो उनके बाद एकदम जर्जर अवस्था में पहुँच गया। लोगों की स्मृति से भी यह स्थान धीरे-धीरे धुंधला हो ही चुका था अगर लणडोर की रानी के कदम इस स्थान पर न पड़े होते तो! उनके बारे में मान्यता है कि एक बार रानी पुरा गांव में सैर पर थीं, अचानक उनके कदम स्वयंभू शिवलिंग को स्पर्श कर गए। रानी ने प्रायश्चित में भगवान शंकर के विशाल मंदिर का निर्माण करवाया। आज जो मंदिर का रूप है, उसमें लणडोर की रानी का बड़ा योगदान है। इस स्थल के माहात्म्य को देखते हुए इसे अन्य धर्म स्थली की तरह सामने लाया जाना चाहिए।

आज का आंखों-देखा हाल 

पुरामहादेव मंदिर की ग्राउंड रिपोर्टिंग में हर्ष वर्धन द्विवेदी ने आज पाया गया कि भीड़ पर पुलिस का कोई नियंत्रण नहीं था बल्कि भीड़ खुद ही बहुत संयमित दिखी। वहीं मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त मिला। हालाँकि 3 लाख लोगों को पुलिस द्वारा नियंत्रित करना आसान नहीं था, लेकिन श्रद्धालुओं में संयम ही था जिससे सब कुछ व्यवस्थित था। ए एस पी रैंक के पुलिस अधिकारी मनीष मिश्रा की तैनाती में सतर्क नज़र आ रहे थे।