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सुप्रीम कोर्ट ने बताया, चश्मदीदों के बयानों का क्या है महत्त्व?

Public Lokpal
October 16, 2021

सुप्रीम कोर्ट ने बताया, चश्मदीदों के बयानों का क्या है महत्त्व?


नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने हत्या के एक मामले में दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली चार लोगों की अपील को खारिज करते हुए कहा कि चश्मदीदों के बयान दर्ज करने में महज देरी से उनकी गवाही खारिज नहीं हो सकती।

न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री निश्चित रूप से आरोपी व्यक्तियों द्वारा बनाए गए भय को स्थापित करती है।

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा, "यह सच है कि संबंधित चश्मदीदों के बयान दर्ज करने में कुछ देरी हुई थी, लेकिन केवल देरी के तथ्य से उनकी गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता है।"

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर गवाह खुद को डरे और आतंकित महसूस करते हैं और कुछ समय के लिए आगे नहीं आते हैं, तो उनके बयान दर्ज करने में देरी को पर्याप्त रूप से समझा जाना चाहिए।

पीठ ने अपने 7 अक्टूबर के आदेश में कहा कि ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं लाया गया है जिससे पता चलता हो कि इस अवधि के दौरान गवाह अपना सामान्य काम कर रहे थे।

शीर्ष अदालत कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाले चार आरोपियों द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था और सत्र न्यायाधीश, मालदा द्वारा शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 27(3) के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत उनके गुनाह और सजा की पुष्टि की गई थी।

अपीलकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत को दो चश्मदीदों की गवाही के बारे में बताया और कहा कि उनके बयान दर्ज करने में देरी अभियोजन पक्ष के मामले के लिए घातक होगी।

उन्होंने कहा कि ऐसा कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया कि उनके बयान दर्ज करने में देरी क्यों हुई और दो गवाहों की गवाही के अलावा, अपीलकर्ताओं की सजा को सही ठहराने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा कि आरोपी द्वारा फैलाया गया आतंक इतना बड़ा था कि संबंधित गवाह भाग गए थे और यह केवल आरोपी की गिरफ्तारी सहित जांच तंत्र द्वारा उचित कदम उठाए जाने के बाद ही गवाह सामने आए।

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